पद्मश्री हलधर नाग : जिनके नाम के आगे कभी ‘श्री’ नहीं लगा उन्हें ‘पद्मश्री’ क्यों मिला ?
1 min readपद्मश्री हलधर नाग
पद्मश्री हलधर नाग : जिनके नाम के आगे कभी ‘श्री’ नहीं लगा उन्हें पद्मश्री क्यों मिला !
पद्मश्री हलधर नाग को को ज्यादातर हिंदुस्तानी उन्हें नहीं जानते. पद्मश्री पुरस्कार 2021 के तहत भारत में पहली बार ऐसे लोगों का सम्मान किया गया जिन्हे बहुत कम लोग जानते है. इससे पहले पद्मश्री पर ज्यादातर फिल्म, खेल या अन्य क्षेत्र में मशहूर हस्तियों का कब्ज़ा रहा. केरल से लेकर कन्याकुमारी तक भारत के कोने कोने से ऐसे लोगों को चुना गया जिन्होंने जमीन पर समाज के बेहतरी के लिए काम किया है. ये लोग सेलेब्रेटी नहीं है, इसलिए इनकी चर्चा ना पहले हुई ना अब ! तो आखिर कौन है हलधर नाग जिनके नाम के आगे कभी श्री नहीं लगा ? उन्होंने ऐसा क्या किया जिसके लिए इतना बड़ा सम्मान मिला ?
पद्मश्री 2021 के दौरान हलधर नाग समेत ऐसे कई लोगों का चुनाव किया गया जो सामान्यत आम इंसान है. एक आम आदमी को अगर पद्मश्री जैसे पुरस्कार के लिए चुना गया तो ये बड़ी बात है. हलधर नाग के पास पुरस्कार लेने के लिए दिल्ली जाने तक के पैसे नहीं थे. वो खुद तीसरी क्लास पास है लेकिन उन्हें साहित्य के लिए पद्मश्री पुरस्कार मिला. जीवन भर की जमा पूंजी कुल 732 रूपये के अलावा उनके पास 3 जोड़ी कपडे, एक जोड़ी चप्पल और बिन कमानी का चस्मा है. उड़ीसा के रहने वाले हलधर ओड़िया भाषा के प्रसिद्ध कवी और साहित्यकार है.
हलधर ने अब तक 20 महाकाव्य और सैकड़ों कविताये लिखी है. उनकी सबसे बड़ी खासियत ये है की उनके लिखा हर रचना उनको जुबानी याद है. भारतीय इतिहास में ये शायद पहला मौका है जब किसी सख्श को पद्मश्री के लिए मीडिया ने बल्कि सरकार ने ढूंढा है. सफ़ेद धोती और बनियान के साथ एक गमछा लिए वो नंगे पैर ही रहते है. पद्मश्री के साथ उनके लिखे गए हलधर ग्रंथावली 2 को सम्भलपुर विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है.
गरीब दलित परिवार से आने वाले हलधर उड़िया के लोक कवी है. 10 साल की उम्र में मां बाप के गुजरने के बाद उन्होंने पढाई छोर दी. तीसरी कक्षा के आगे वो पढ़ नहीं पाए. अनाथ होने के बाद कई साल तक होटल में बर्तन साफ़ करके गुजारे. उसके बाद उन्हें एक स्कूल में रसोइया (खाना बनाने वाला) का काम मिला. कुछ साल नौकरी करने के बाद 1000 रूपये का लोन लेकर उन्होंने दुकान खोली. स्कूल के सामने कॉपी किताब की दुकान में जब भी समय मिलता दुकान चलाते. 1995 में उन्होंने ‘राम- शबरी’ जैसे धार्मिक ग्रन्थ लिखा. लिखने के अलावा वो लोगों को स्थानीय भाषा में अपने लिखे ग्रन्थ और कविताये सुनाने लगे. 5 विद्यार्थी उनके लिखे साहित्य के ऊपर PHD कर रहे है.