लॉकडाउन फेल या पास : क्या मोदी कोरोना की जंग हर गए ?
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लॉकडाउन फेल या पास : क्या मोदी कोरोना की जंग हर गए ?
पिछले 60 दिनों में इस देश के राजनैतिक पार्टीयों ने पुरी दुनिया मे देश का मजाक बना दिया. भारत के जिस कदम को पुरी दुनिया ने आखिर तक उसे नाकामयाब बनाने कि भरपुर कोशिश हुई. प्रधानमंत्री ने जब पूरे देश मे लॉकडाउन कि घोषणा कि तब शायद उनको अंदाजा भी नही होगा राज्य सरकारें हाथ खड़ी देगी. लॉकडाउन का फैसला अचानक करना शायद गलत फैसला था, तभी तो मोदी ने अपने दुसरे संबोधन मे देश से माफि भी मांगी. लॉकडाउन के अचानक फैसले को विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत पुरी दुनिया और भारत के एक्सपर्ट ने भी सराहा. याद रहे कोरोना एक ऐसी बिमारी है जो एक दुसरे से फैलती है, यही वजह है कि लॉकडाउन का फैसला अचानक लिया गया, ताकि कोरोना कि चेन बनने से रोका जा सके. पहले 15 दिन तो यह फैसला कामयाब होता दिख रहा था लेकिन असली राजनैतिक खेल शुरु हुआ दुसरे लॉकडाउन मे. केंद्र से मिलने वाली राशन के बावजूद राज्य सरकारें उसे बांटने मे असमर्थ हुई, विपक्षी नेताओं और मीडिया ने पहले डर फैलाया कि यह लॉकडाउन जुन जुलाई तक चलेगा. काम धंधा बंद होने और राशन पानी कि दिक्कत के चलते मजदूर निकल पड़े अपने घरों कि तरफ. time of india report
कोरोना की भयावह स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार ?
हो सकता है कि अचानक लॉकडाउन का फैसला गलत था, लेकिन राज्य सरकारें अगर चाहती तो यह कामयाब होता और आज कि जैसी भयावह स्थिरी नही बनती. बेशक कुछ गरिब,मजदूरों को तकलिफ होती, कुछ लोगों कि जान भी चली जाती लेकिन सैकड़ो जान बच जाती. सख्ती से लॉकडाउन के पालन का असर दिखता और पूरा देश अब तक इस विपदा से निपट चुका होता. राज्य सरकारों ने जान बुझकर मजदूरों के बीच भय का माहौल बनाया, मुंबई से गिरफ्तार विनय दुबे के राजनैतिक सांठगांठ पर नजर डालिए तो स्पष्ट हो जाता है कि कौन लोग नही चाहते थे कि लॉकडाउन सफल हो. मजदूर कि तकलीफ विपक्ष कि राजनीति का हथियार था लिहाजा विपक्ष ने पुरजोड़ कोशिश कि और मजदूरों का ऐतिहासिक पलायन हुआ. हर एक मजदूर की कहानी के माध्यम से केंद्र को दोषी ठहराना सरल था. इस खेल मे तथाकथित गोदी मीडिया ने भी विपक्ष का भरपुर सहयोग किया और केंद्र सरकार को कठघरे मे खड़ा कर दिया. किसी ने दिल्ली, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान या गुजराज के मुख्यमंत्रियों से सवाल नही किया कि अगर हर नागरिक के भोजन-पानी की व्यवस्था केंद्र की जिम्मेदारी है तो राज्य सरकारों का अस्तित्व किस लिए है ?
लॉकडाउन फेल या पास ?
कोरोना महामारी को रोकने के लिए केंद्र के द्वारा उठाए गए कदम को विशेषज्ञों समेत डब्लूएचओ ने भी इसलिए सराहा क्योंकि उन्हे मालूम था यही एक तरिका है इसे रोकने का. लॉकडाउन का मूल उद्देश्य ही यही था कि जो जहां है वो वहीं रहे. साजिशन मजदूरों को डराकर बाहर निकाला गया, फिर मीडिया के माध्यम से उनके पांव के छाले दिखाकर केंद्र को कोसने का सिलसिला शुरु हुआ. असली खेल तो अभी बाकि है, शहरों से निकलकर जो अपने साथ वायरस को भी गांव तक लेकर गए है उसका विकराल रुप बाकि है. हो सकता है कि मंजर वह ना हो जिसका डर है लेकिन फिलहाल देशवासियों के 50 दिनो कि कुर्बानी बेकार दिख रही है. भले ही मोदी ने नेक इरादे से देश कि भलाई के बारे मे सोंचा हो, लेकिन इस बार वो मात खा गए. अच्छी नियत और नेक इरादे हमेशा सफल नही होते, इस महामारी मे कितना बड़ा खेल खेला गया है मोदी भी इस बात को समझ चुके है. मोदी के अंतिम संबोधन मे भी उनकी हताशा झलक रही थी. मामला हाथ से निकलने बावजूद मोदी देश को पटड़ी पर लाने मे लगे हुऐ है, लेकिन एक अकेला आदमी कब तक लोहा लेगा ? अगर ऐसा ही चलता रहा तो देश कि स्थिती और भवायह होनी वाली है जैसा कि कुछ विघटनकारी ताकतें चाहती है. भारत में लॉक डाउन की सफलता का पैमाना तय करने का अपना अपना नजरिया है. देश में लगातार बढ़ रहे आंकड़ें लॉक डाउन के फेल होने की वकालत कर रहे है तो जवाब में तर्क यह दिया जा रहा है की लॉक डाउन नहीं होता तो मरीज और मृतकों की संख्या कण्ट्रोल से बहार होती. हालाँकि भारत अब टॉप 7 देश में पहुंच चूका है. केंद्र को इस बात का जवाब तो देना ही चाहिए की लॉक डाउन से निकलने का कोई पुख्ता इंतेज़ाम है या नहीं ?
कोरोना के बाद मारा जाएगा मिडिल क्लास ?
भारत में कोरोना की स्थिति और सरकार की तयारी !
WHO का मानना है कि भारत में कोरोना मरीजों की संख्या तीन हफ्ते में दुगना हो रहा हैं. लॉकडाउन फेल या पास – भारत के साथ पुरे एशिया में कोरोना महामारी की स्थिति लगातार विस्फोटक बनी हुई है. भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, जैसे घनी आबादी वाले देशों के लिए ट्रांसमिशन का खतरा बना हुआ है. विश्व स्वास्थ्य संगठन सामुदायिक संक्रमण के खतरे के लिए जगह किया है. भारत सरकार द्वारा जारी दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य स्किम आयुष्मान भारत योजना की विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तारीफ की है. अभी तक योजना का लाभ लगभग 10 करोड़ लोगों को मिला है . प्राइवेट अस्पतालों में फ्री इलाज के जवाब में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है की ये उनकी संवैधानिक दायरे से बाहर है. सरकार ने ये बताया की इस तरह की नीतियों को सम्बंधित राज्य सरकार चाहे तो लागु कर सकते है. याचिकाकर्ता सजाय जैन ने चिंता जाहिर की है, की बहुत से लोगों के पास कोई बीमा नहीं है. कोरोना के इलाज में गरीब बगैर किसी बीमा वाले मरीजों की चिंता जताई थी.
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