वीर सावरकर माफीनामा : सरकारी दस्तावेज में गद्दार या देशभक्त ?
1 min readवीर सावरकर माफीनामा
वीर सावरकर माफीनामा : सरकारी दस्तावेज से खुलासा होश उदा देंगे !
कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां हमेशा वीर सावरकर माफीनामे का आधार बनाकर उन्हें गद्दार साबित करना चाहती है. आज़ादी के बाद पहले महात्मा गाँधी की हत्या में उनका नाम जोड़कर फंसने की कोशिश हुई. लेकिन सबसे ज्यादा प्रहार उनके मृत्यु के बाद शुरू हुआ. सावरकर की मौत के बाद उनको इतिहास से मिटा देने की कोशिशें होती रही. पिछले कुछ सालो में अक्सर नेहरू vs सावरकर की चर्चा होते रहती है. बतौर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी रैली में मंच से खड़े होकर बोल चुके है “मै सावरकर नहीं हूँ, मै माफ़ी नहीं मांगूगा. वामपंथी इकोसिस्टम सावरकर को हथियार बनाकर बीजेपी और हिंदुत्व को निशाना बनाते है. तो क्या सचमुच सावरकर ने अंग्रेजों से माफ़ी मांगी थी ? इस सवाल के जवाब को लेकर भारत सरकार ने बड़ा खुलासा किया है.
आज़ादी के बाद लगातार कई सालों तक देश में कांग्रेस की सरकार रही, इस दौरान नेहरू गाँधी परिवार के नेताओं का जबरदस्त महिमामंडन हुआ. देश के जनमानस के मन में इनकी महानता को इस कदर घुसेड़ा गया की बाकि लोग विलुप्त होते चले गए. सावरकर भले ही पहला टारगेट रहे हो, लेकिन सुभाष चंद्र बोस से लेकर भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद जैसों को भी नहीं बक्शा गया. आज भी देश में किस नेता के नाम पर सबसे ज्यादा समारक या सरकारी भवन है इससे अंदाजा लगाया जा सकता है. पिछले कुछ सालों में कांग्रेस खुलकर सावरकर के खिलाफ बोल रही है. आरोप है की वीर सावरकर ने अंग्रेजों से चिठ्ठी लिखकर मांफी मांगी थी, एक पात्र सोशल मीडिया पर भी शेयर किया जाता है. लेकिन सबसे बड़ी बात ये है की भारत सरकार के दस्तावेज में ऐसी कोई चिठ्ठी है ही नहीं. आश्चर्य की बात ये है को जिस कांग्रेस की सरकार आज़ादी के बाद से कई दशकों तक रही उन्होंने ने भी ऐसा कोई दस्तावेज तैयार नहीं किया.
1911 में वीर सावरकर को नासिक के टैक्स कलेक्टर जैकसन की हत्या करने में सहयोग देने के लिए अंडमान में आजीवन कारावास का दंड दिया गया था। इस दौरान उनके ऊपर काफी यातनाए हुई. आलम ये था की उन्हें जेल के अंदर लिखने के लिए कलम और कागज़ भी नहीं मिलता था. उसी जेल के अलग कोठरी में उनके भाई गणेश बाबाराव सावरकर को भी रखा गया था, लेकिन दोनों को ये बात पता नहीं थी. पिछले साल भारत सरकार की संस्कृति पर्यटन मंत्री प्रह्लाद पटेल ने ये दावा किया था की सरकार के पास सावरकर के माफीनामे का कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है. संसद में पूछे गए प्रश्न का जवाब देते हुए उन्होंने कहा की ““अंडमान और निकोबार के डाइरेक्टरेट ऑफ आर्ट एंड कल्चर से मिली जानकारी के अनुसार ऐसी कोई भी दया याचिका के रिकॉर्ड मौजूद नहीं है, जो विनायक दामोदर सावरकर ने ब्रिटिश काल में दायर किया हो। ऐसी दया याचिका न जेल के रोकड़ में हैं और न ही डिपार्टमेंट ऑफ आर्ट एंड कल्चर के पास है”।
हिन्दू-मुसलमान, पाकिस्तान पर नेहरू ने आखिरी समय में क्या कहा था ?
कांग्रेस पार्टी अक्सर वीर सावरकर को कायर बताती है, उसका आरोप है की सावरकर ने अंग्रेजो का साथ दिया था और दया याचिका की मांग की थी. दरअसल 10 साल की कठोर सजा काटने के बाद उन्हें सेलुलर जेल से रत्नागिरी जेल में शिफ्ट किया गया था. रत्नागिरी में तीन साल सजा काटने के बाद 1924 में उन्हें रिहा तो कर दिया गया लेकिन उनकी राजनीतिक गतिविधियों पर 1937 तक रोक लगा दी गई. कांग्रेस के आरोप को अगर सच माने फिर भी सवाल उठता है की अगर सावरकर उनके मददगार थे उनके ऊपर प्रतिबन्ध क्यों लगाया गया ? जबकि महात्मा गाँधी और जवाहर लाल नेहरू को जेल में हर सुविधा दी जाती थी. अंग्रेज कालापानी की सजा उसी को देते थे जिससे उनकी सरकार को खतरा हो. अगर सावरकर अनेगरेजों के मददगार थे तो उन्हें कालापानी की सजा क्यों मिली ? दरअसल जिस एमनेस्टी ऑर्डर के अंतर्गत सावरकर बंधुओं को रत्नागिरी जेल भेजा गया था, उस याचिका पर महामना मदन मोहन मालवीय और मोहनदास करमचंद गांधी ने स्वयं हस्ताक्षर किए थे।
भगत सिंह अक्सर सावरकर की लिखी पुस्तक ‘इंडियाज़ वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस’ और ‘हिन्दू पद शाही पढ़ते थे.
इस लॉजिक से भगत सिंह भी देशभक्त नहीं थे, क्योंकि वे सावरकर की किताबे बड़े चाव से पढ़ते थे। 1940 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस से मिले थे वीर सावरकर. कहा जाता है की उन्होंने नेताजी को भारत के बाहर से स्वतन्त्रता की लड़ाई जारी रखने का सुझाव दिया था. सावरकर ने रॉयल इंडियन नेवी और रॉयल इंडियन एयर फोर्स के लड़ाकों द्वारा किए गए विद्रोह का भी समर्थन किया था. आज़ादी के बाद भारत के विभाजन का विरोध किया था. इसलिए सवाल उठता है की, जब भारत सरकार के दस्तावेज में माफीनामे का कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है तो किस आधार पर इतने गंभीर आरोप लगते है ? वो वाकई कायर थे तो कांग्रेस सरकार ने कोई दस्तावेज सहेज कर क्यों नहीं रखा ? वीर सावरकर माफीनामा